छठ-महिमा
                     छठ - महिमा   सुर  संस्कृत  में  छठ - महिमा,  सब  मुक्त  कंठ  से  गाते  हैं  |   तब  सविता  के  प्रखर  प्राण  को,  आत्मसा त्  कर  पाते  हैं ||       शुचि,  आहार - विहार  नीति  का,  पालन  इसमें  होता  है,    फिर  श्रद्धा,  विश्वास,  प्रेम  का,  पोषण  इसमें  होता  है,    जननीवत्    वरदान  प्रकृति  के , सहज  हमें  मिल  पाते  हैं  |   तब  सविता  के  प्रखर  प्राण  को,  आत्मसा त्  कर  पाते  हैं  ||       प्राच्य  संस्कृति  में  नदि याँ  भी,  देवी  का  पद  पाती  हैं,   उनसे  निर्मल  भाव  जुड़े  तो,  जीवन  को  सरसाती  हैं,    पावनता  के  लिए  पर्व  को,  गंगा  तीर  मानते  हैं  |   तब  सविता  के  प्रखर  प्राण  को,  आत्मसा त्  कर  पाते  हैं  ||       संध्या  वंदन  की  गरिमा  से,  मनु ज  श्रेष्ठता  पाता  है,   तप  की  भट्टी  में  तपकर  वह,  जीवन  धन्य  बनाता  है,    सूर्य  अर्ध्य  विज्ञान  समझकर,  हम  साधक  बन  जाते  हैं  |   तब  सविता  के  प्रखर  प्राण  को  आत्मसा ...